बच्चों की रंगबिरंगी, कल्पनाओं की दुनिया, वो परी कथाएं, वो बोलते, जूझते, तरकीबें बनाते प्यारे–प्यारे जानवर–– आज सब कहीं शोर गुल में गुमते चले गए । वह सब जो हमारी पीढ़ी ने जिया, बादलों से उतरती परी ने हमें सहलाया था, तो कभी चीकू ख़रगोश ने जीना सिखाया था । हमारी पीढ़ी की यह ज़िम्मेदारी थी कि सदियों से चली आ रही उन कहानियों को, किस्सों को आज के बच्चों तक पहंुचाते । लेकिन आज बाल साहित्य पर गिनी चुनी ही मौलिक रचनाएं लिखी जाती हैं और प्रकाशित होती हैं । ऐसे में अलका श्रीवास्तव की यह नई किताब उन सभी बच्चों और अभिभावकों को फिर से उस सुंदर दुनिया में ले जाएगी, जहाँ खुशियां होंगी, मासूमियत होगी, प्रेम होगा, समस्याएं होंगी, तो उनका हल भी होगा । कहानी भी, नैतिक शिक्षा भी और पे्ररणा भी । मैंने उनकी इन कहानियों को पहले भी पढ़ा है । वे जीवंत होती हैं । जिनमें परिवेश और चरित्र चित्रण बेहद स्वाभाविकता से उकेरा होता है । मुझे आशा है इस पुस्तक को सराहा जाएगा ।