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Umar
Anshu Tripathi
Rs. 199.00
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उमर पढ़ने वाला हर शख़्स एक आतंकवादी के अंदर के पसोपेश और अनकहे दर्द से होकर गुज़रता है। यह सच है कि हम आतंकवादी को केवल समाज की गढ़ी पूर्व निर्धारित परिभाषाओं में तोलकर उसे समाज से काट कर केवल सज़ा-ए-मौत के फ्रेम में जड़ कर रख देते हैं लेकिन कभी यह नहीं सोचते कि कोई भी इंसान माँ के पेट से आतंक सीखकर नहीं आता। उसकी गलत तरबियत, उसके आसपास का माहौल, उसकी ज़रूरतें और उसकी शिक्षा भी उसे इस गलत रास्ते में डालने के लिए जिम्मेदार होता है।
उमर में एक पूर्व आतंकवादी मंज़ूर अहमद बुहरू के अनुभवों से देश के जवानों को यही बताने की कोशिश की गयी है कि इस काम से न व्यक्ति का, न समाज का और न देश का ही कोई भला होता है। एक वक्त ऐसा आता है कि गलती करने वाला न गलती सुधार पाता है और न अपनी पहले की ज़िंदगी मे वापिस लौट पाता है।
किताब हर दृष्टि से देश, समाज और व्यक्तिगत हित में लिखी गयी है। रुचिकर कथानक को प्रभावी कहन में गुथ कर प्रस्तुत हुई है उमर..!
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