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Bharat Ka Lok Sanskritik Vimarsh

Bharat Ka Lok Sanskritik Vimarsh

Dr. Virender Singh Yadav

Rs. 350.00

समाज और संस्कृति का गहरा सम्बन्ध है और समाज साहित्य का आईना है। भिन्न-भिन्न समाज में भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का समावेश निहित होता है। अच्छी संस्कृति एक अच्छे समाज की पहचान होती है। यदि संस्कृति ही अच्छी नहीं हो तो एक अच्छे समाज की कल्पना करना भी उचित नहीं होगा। साहित्यकार जब किसी साहित्य की रचना करता तो वह उसमें उसके समक्ष के समाज व उस समाज में प्रचलित संस्कृतियों का भी वर्णन करता है। अतः किसी भी साहित्य में वर्णित समाज में व्याप्त संस्कृति का भी एक विशेष महत्व होता है अर्थात् साहित्य, समाज और संस्कृति परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।

साहित्य का मुख्य प्रयोजन मानवीय संवेदना का विस्तार और प्रचार-प्रसार करना है। साहित्य मनुष्य को मनुष्यता का पाठ सिखाता है। वह व्यक्ति को व्यक्तिगत से सार्वजनिक कर उसके अंदर की मनोदशा को विस्तार देता है। स्वतंत्राता, समानता और बंधुता भारतीय संविधान और जीवन-दर्शन की मूल भावना हैं। हमारा साहित्य-दर्शन भी इसी पर केन्द्रित है। हमारे साहित्यकार स्वतंत्राता, समानता और बंधुता के सिद्धांत पर ही चलकर स्वस्थ समाज और महान साहित्य का सृजन करते हैं। वही साहित्य चिरंजीवी होता है, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो जो हम में गति और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं। ‘बाजारवाद और अपसंस्कृति’ के दौर में भी लोकसंस्कृति एवं लोक साहित्य की धारा को आज समाज में अधिक से अधिक प्रतिष्ठा दिलाने की आवश्यकता है। जिसके लिए निश्चय ही साहित्यकारों को आगे आना चाहिए।

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