सेवा और सिमरन सिख पंथ के दो प्रमुख आधार हैं। सेवा अर्थात् मनुष्य व समाज की सेवा, जिसे परमात्मा की भक्ति का रूप माना गया है और सिमरन अर्थात् परमात्मा के नाम का स्मरण जो 'नवधा भक्ति' में भक्ति का एक मुख्य प्रकार है। स्मरण में परमात्मा के नाम का जप कर उसकी भक्ति की जाती है। परमात्मा और नाम जप की महिमा तथा भक्ति की रीतियों के संबंध में आदिगुरु गुरु नानक देव जी के महत्त्वपूर्ण संदेश, उपदेश और शिक्षाएं हैं जो उनकी पावन वाणी 'जपुजी साहिब' में संकलित हैं। वाणी का नाम 'जपु' है जिसे श्रद्धा-सम्मान के साथ 'जपुजी साहिब' कहा जाता है। गुरुदेव ने 'नाम जप' को आदर्श सिख जीवन का प्रथम सिद्धांत निरुपित किया है, दो अन्य सिद्धांत हैं, किरत कमाई (ईमानदारी से जीविका अर्जन) और वंड छकना (अर्जित के एक भाग का समाज में दान)।