स्वतंत्र भारत में हिंदी भाषा में जिन कथाकारों ने अपने योगदान से भारतीय साहित्य को लेखन को समृद्ध किया है उनमें भीष्म साहनी का नाम आदर से लिया जाता है। भीष्म साहनी भारत विभाजन की पीड़ा से उपजे कथाकार हैं जिनकी संवेदना में साधारण मनुष्यों के सुख-दुख शामिल हो गई हैं। अनेक महत्त्वपूर्ण कहानियों के बाद जिस उपन्यास से उन्हें अखिल भारतीय प्रतिष्ठा मिली वह था तमस। साम्प्रदायिकता के नंगे नाच और अंग्रेजी साम्राज्यवाद के कुत्सित चेहरे को यह उपन्यास बहुत सुंदरता से बेपर्दा करता है। यद्यपि भीष्म साहनी का मन जिस उपन्यास की रचना में कहीं अधिक लगा वह 'मय्यादास की माड़ी' है। भारतीय समाज और जीवन का ऐसा विशद भावपूर्ण चित्र काम ही कृतियों में आया है। उन्होनें कहानी और उपन्यास के साथ नाटक की रचना में भी योगदान किया। उनके नाटक 'हानूश, कबिरा खड़ा बाजार में' और 'माधवी' रंगमंच की दृष्टि से भी उल्लेखनीय हैं और उनके पाठ में साहित्य की गहराई दृष्टिगोचर होती है। भीष्म साहनी भारतीय प्रगतिशील आंदोलन के एक अंग रहे इप्टा के सिपाही रहे थे और वहां से अर्जित महान मानवीय मूल्यों को उनके जीवन और साहित्य में देखा जा सकता है। उनकी आत्मकथा इन जीवन मूल्यों का दस्तावेज बन गई थी। युवा आलोचक पल्लव के संपादन में 'कथा शिखर : भीष्म साहनी' एक आभाव की पूर्ति करती है। आशा की जानी चाहिए की यह पुस्तक नए पाठकों को भीष्म साहनी के लेखन से जोड़ने का काम कर सकेगी।