‘एक देश, एक कर’ और ‘सिंपल एंड गुड टैक्स’ कहे जानेवाले जीएसटी में उलझनों की भरमार है। यह भूलभुलैया है। पत्रकार रहे संजय कुमार सिंह अनुवाद का काम करते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे। जीएसटी उनके लिए ऐसा भयानक तुफान सिद्ध हुआ, जिसने उनके घोसले को उजाड़ कर रखा दिया। काम बंद हो गया। जो पैसे मिलने थे, वे भी नहीं मिल रहे थे। ऐसे में उन्होंने जीएसटी को समझने की कोशिश की। इस पुस्तक में विभिन्न क्षेत्रों में जीएसटी के असर को समझने की कोशिश की गयी है। उन्होंने बताया है कि छोटे-मोटे कारोबार और कारोबारी कैसे तबाह हो रहे है। कहने को तो छोटे व्यापारियों को जीएसटी से बाहर रखा गया हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि उनसे माल खरीदने वाले बडे़ व्यापारी उनसे माल खरीद ही नहीं सकते, तो वे क्या करें? यह पुस्तक जीएसटी लागू होने (2017) के बाद के मुद्दों पर रोशनी डालती है। जरूरी सूचनाओं के अभाव, पोर्टल की समस्याओं, तकनीकी ज्ञान न होना, भाषा की जानकारी न होना, दंड का डर...इन सबसे कर दाताओं को जिन मानसिक परेशानियों का समाना करना पड़ा, उन सबका वर्णन किया गया है।