
Toh Kya Hoga?
Santosh Singh
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इक्कीसवीं सदी के आगमन के बाद नए ग़ज़लकारों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि आई है। नई पीढ़ी के इन्हीं ग़ज़लकारों में एक प्रमुख नाम संतोष सिंह का है जिनका पहला काव्य संग्रह जिसमें ग़ज़लें भी हैं। कवि, ग़ज़लकार संतोष सिंह ने स्त्री विमर्श के वर्तमान दौर को ध्यान में रखते हुए स्त्री जीवन पर महत्वपूर्ण कविताएँ लिखी हैं।
डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय
वरिष्ठ प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग
मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई
संतोष की अच्छी बात मुझे ये लगती है कि एक महानगर में, एक मोटर की कंपनी में प्रबंधकीय ज़िम्मेदारी सँभालते हुये, उन्होंने ग़ज़ल की महीन और लचकदार टहनी को हरा रखा हुआ है। जब संतोष लिखते हैं कि:
दर्द ईजाद कर रहा हूँ मैं,
हाँ, तुझे याद कर रहा हूँ मैं।
तो ग़ज़ल की वो लचकदार टहनी यक़ीनन सुख की साँस लेती होगी। सुख की साँस आसानी से नहीं आती। बहुत दुखों के भोगेजाने का हासिल है सुख की साँस। बहुत सी ख़्वाहिशों के मोह से छूट जाने का ईनाम है सुख की साँस। किसी फ़ैसले पर पहुँचने का नाम है सुख की साँस।
इरशाद कामिल
संतोष सिंह न किसी मंच के मुरीद हैं, न किसी मठ के मठानुयायी। वे उस चित्त, चिंतन, धारा और विचारधारा के छात्र हैं जो विचारधारा अपने समय और समाज का परचम लहराने वाले ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार से लेकर निदा फ़ाज़ली तक, अपनी एक गहरी, गाढ़ी और लंबी लकीर बनाती है।
आलोक श्रीवास्तव
कवि-गीतकार व पत्रकार
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