Jihad Ke Khilaf Jihad
Devendra Narain
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" जिहाद के खिलाफ़ जिहाद ? " आधुनिक वातावरण में पली-बढ़ी एक पाकिस्तानी लड़की सलमा की दर्द भरी कहानी है। स्कूल के दिनों में उसे जिंदगी बहुत हसीन लगती थी । उसके डैड कर्नल रहमान जो आईएसआई में काम करते थे, उसके हीरो थे । उसकी हँसी-खुशी गायब हो गई जब उनका जिहादियों को ट्रेनिंग देने के लिए बालाकोट ट्रांसफर हो गया । वह कभी नहीं भूल पाई कि ट्रांसफर के बारे में बताने के समय उन्होंने कहा था कि उन्हें वह सब कुछ करना पड़ता है जिसे उनका ज़मीर इजाजत नहीं देता । उन्होंने कहा था, "पता नहीं इन कम्बख्तों को कब समझ आयेगा कि जिहाद के बल पर हिंदुस्तान से कश्मीर नहीं ले सकते; कोई भी देश अपने लोगों को मरवाने के लिए इस तरह नहीं भेजता जैसे पाकिस्तान करता है । "
सलमा इंग्लैंड में जेनेटिक्स की पढ़ाई कर रही थी जब पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर फिदायीन हमला हुआ और इंडिया ने बालाकोट पर बम गिराकर बदला लिया जिसमें जिहादियों के साथ कर्नल रहमान भी मारे गए। सलमा को गहरा सदमा लगा । वह अपने आप से सवाल करती थी कि उसके डैड की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है, वे लोग जो जिहादियों को तैयार करते हैं या वे लोग जिन्होंने बालाकोट पर बम गिराया ? उसका दिल और दिमाग कहता था कि असली गुनाहगार पाकिस्तान की सरकार, फौज और आईएसआई हैं; अगर पाकिस्तान में दहशतगर्दी का धंधा नहीं चलता तो उसके डैड नहीं मारे जाते। गुस्से के मारे वह बदले की आग में जलने लगी लेकिन किससे बदला ले और कैसे?
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