
Kab Tak?
Devendra Narain
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"कब तक?" बालाकोट पर भारत की एयर-स्ट्राइक की पृष्ठभूमि में लिखी गई एक पाकिस्तानी लड़की की दर्दभरी कहानी है। आधुनिक परिवेश में पली-बढ़ी सलमा को स्कूल के दिनों में जिंदगी बेहद हसीन लगती थी। लेकिन उसकी खुशियाँ तब गायब हो गई, जब आईएसआई ने उसके पिता कर्नल रहमान को आतंकियों को ट्रेनिंग देने के लिए बालाकोट भेज दिया। वह कभी नहीं भूल पाई कि ट्रांसफर की बात बताते हुए उन्होंने कहा था, "पता नहीं इन कमबख्तों को कब समझ आएगा कि आतंकवाद के बल पर हिंदुस्तान से कश्मीर नहीं ले सकते। कोई भी देश अपने लोगों को मरवाने के लिए इस तरह नहीं भेजता, जैसा पाकिस्तान करता है।" सलमा लंदन में जेनेटिक्स की पढ़ाई कर रही थी, जब पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर फिदायीन हमला हुआ। भारत ने बालाकोट पर बम गिराकर बदला लिया, जिसमें आतंकियों के साथ-साथ उसके पिता भी मारे गए। गहरे सदमे में, सलमा मानती है कि उसके पिता के असली हत्यारे वे लोग हैं, जो पाकिस्तानी युवाओं को आतंकी बनने के लिए उकसाते हैं। वह उनसे बदला लेना चाहती है, लेकिन समझ नहीं पाती कि कैसे। हालात ऐसे बनते हैं कि आईएसआई उसे अपने जाल में फंसाकर लंदन में बम विस्फोट करवाने की योजना बनाता है। लेकिन सलमा एक मस्जिद में बम विस्फोट कर कुछ जिहादियों को मार देती है और आईएसआई की साजिशों को उजागर कर देती है। उसे जान से मारने की आईएसआई की कोशिश नाकाम रहती है, पर अब उसे पता है कि उसकी जिंदगी हमेशा खतरे में रहेगी।यह भी सवाल है कि आतंकी बनाने का धंधा कब तक चलेगा।
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