Stree Katha-Bhasha: Samkaleen Stree Kathakaron Ki Bhasha Ki Pehchaan-Padtaal
Kirti Chundawat
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युवा आलोचक कीर्ति चूण्डावत की यह किताब हिंदी में अपने ढंग की पहली किताब है। हिंदी में स्त्री विमर्श को लेकर उत्साह तो बहुत है, लेकिन स्त्रियों की रचनात्मक सक्रियता की अलग से पहचान और मूल्यांकन की दिशा में अर्थपूर्ण काम बहुत कम हुआ है।
हिंदी में गत तीन-चार दशकों में स्त्री रचनात्मक सक्रियता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अलग-अलग सरोकारोंवाली कई स्त्री कथाकार दृश्य पर सक्रिय हैं। कथाकार यदि स्त्री है, तो जाहिर है, उसकी भाषा की अर्थ छवियाँ, व्यंजनाएँ और मुहावरा भी स्त्री लाक्षणिक होंगे। जरूरत इस बात की है कि भाषा की इन स्त्री लक्षणाओं की अलग से पहचान हो। कीर्ति ने यहाँ बहुत मनोयोग और श्रम से हमारे समय की प्रमुख स्त्री कथाकारों-कृष्णा सोबती, मैत्रेयी पुष्पा, चित्र मुद्गल, अलका सरावगी, गीतांजलि श्री आदि की भाषा की स्त्री लक्षणाओं की पहचान की है। ये स्त्री लक्षण व्याकरण, लोक, परिवेश आदि से संबंधित हैं। उसने यहाँ कथा-भाषा और फिर आगे जाकर उसमें भी स्त्री कथा-भाषा की अलग से पहचान की है।
हिन्दी आलोचना में स्त्री रचनाकारों की कथा-भाषा के वैशिष्ट्य की पहचान पर अभी समेकित रूप से विचार ही नहीं हुआ है। आशा है, यह किताब इस अभाव की पूर्तिकारक सिद्ध होगी।
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